RBI रिपोर्ट: माइक्रोफाइनेंस में घट रहे कई कर्जदारों से ऋण लेने के मामले, लेकिन दबाव बरकरार

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की नवीनतम वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार, माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में कड़े अंडरराइटिंग मानदंड अपनाने के कारण ऋण वृद्धि में कमी आई है। इसके परिणामस्वरूप कुल सक्रिय उधारकर्ताओं की संख्या में 40 लाख की गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि, यह भी सामने आया है कि उधार लेने वालों की ऋणग्रस्तता 11.7% तक घट गई है, जिसे 3 या 4 ऋणदाताओं से कर्ज लेने के आधार पर मॅप जाता है। 

माइक्रोफाइनेंस सेक्टर में बढ़ता दबाव

रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2025 की दूसरी छमाही में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में फंसी हुई संपत्तियों का अनुपात बढ़ा है। जिन कर्जों के भुगतान में 31 से 180 दिन की देरी हुई है (DPD), उनका अनुपात मार्च 2025 से बढ़कर 6.2% हो गया, जबकि सितंबर 2024 में यह 4.3 % था। विशेष रूप से, बैंकिंग सेक्टर के माइक्रोफाइनेंस पोर्टफोलियो पर दबाव बढ़ा है,जहां 31 से 180 DPD 4.7 प्रतिशत से बढ़कर 6.5 प्रतिशत हो गई है।

दबावग्रस्त होने के बावजूद, इस सेक्टर को मिलने वाले ऋण में कमी आई है। वित्त वर्ष 2024-25 में माइक्रोफाइनेंस सेक्टर को मिलने वाला कुल ऋण 13.9 प्रतिशत घटा है। इसमें बैंक ऋण में 13.8 प्रतिशत की कमी आई है, जो इस सेक्टर को मिलने वाले कुल कर्ज का 48.3 प्रतिशत है। 

आत्म-नियमन और भविष्य की दिशा

माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र के लिए दो स्व-नियामक संगठनों (SROs) -एमएफआईएन (MFIN) और सा-धन (Sa-Dhan) - ने क्षेत्र में दबाव कम करने के लिए अपने सदस्यों के लिए सुरक्षा प्रावधान कड़े कर दिए थे। इसके तहत, ऋण की सीमा ₹2 लाख तक निर्धारित की गई और यह नियम बनाया गया कि उद्धारकर्ता केवल 3 ऋणदाताओं से ही ऋण ले सकता है। एसआरओ ने अपने सदस्यों से यह भी अनुरोध किया कि वे ₹3000 से अधिक के 90 दिन के बकायेदारों को ऋण देना बंद कर दें। 

हाल ही में 9 जून 2025 को HSBC के वित्तीय समावेशन कार्यक्रम में अपने भाषण में डिप्टी गवर्नर एम. राजेश्वर राव ने माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में अति- ऋणग्रस्तता, उच्च ब्याज दरों और वसूली को लेकर सख्ती के दुष्चक्र पर प्रकाश डाला था। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि ब्याज दरों में कुछ कमी आई है, लेकिन हाल की तिमाहियों में कुछ क्षेत्रों में अभी भी उच्च ब्याज दरें और उच्च मार्जिन देखने को मिले हैं। 

यह रिपोर्ट माइक्रोफाइनेंस सेक्टर के लिए एक मिश्रित तस्वीर प्रस्तुत करती है, जहां कर्जदारों पर दबाव कम हो रहा है, वहीं सेक्टर खुद कुछ चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसके लिए निरंतर निगरानी और सुधारात्मक उपायों की आवश्यकता है।