ऋण वृद्धि दर तीन साल में सबसे कम: क्या है वजह?
भारतीय अर्थव्यवस्था में कुल ऋण वृद्धि दर पिछले तीन साल के सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई है। 30 मई को खत्म हुए पखवाड़े में यह वृद्धि दर सालाना आधार पर सिर्फ 8.97%रही। यह दिखाता है कि बैंक अब कर्ज देने में ज्यादा सतर्क हो गए हैं और मुनाफे से ज्यादा अपनी संपत्ति कि गुणवत्ता को प्राथमिकता दे रहे हैं, खासकर छोटे और बिना गारंटी वाले कर्जों में बढ़ते दबाव को देखते हुए।
बैंकिंग प्रणाली की वर्तमान स्थिति
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के अनुसार :
- कुल जमा राशि: बैंकिंग प्रणाली में कुल ₹231.7 लाख करोड़ कि जमा राशि थी।
- कुल ऋण: कुल ऋण ₹182.8 लाख करोड़ था।
- ताजा आंकड़े: 30 मई को समाप्त हुए पखवाड़े में जमा राशि में ₹2.84 लाख करोड़ की बढ़ोतरी हुई, जबकि ऋण में ₹59,885 करोड़ की वृद्धि दर्ज की गई।
जमा वृद्धि भी सालाना आधार पर 9.9% बढ़ी, जो ऋण वृद्धि दर से 100 आधार अंक (1%) ज्यादा है। इससे पहले मार्च 2022 में कुल ऋण वृद्धि 9% से नीचे रही थी।
ऋण वृद्धि में सुस्ती के कारण
मोतीलाल ओसवाल कि रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले एक साल में ऋण वृद्धि कि रफ्तार धीमी हुई है क्योंकि:
- परिसंपत्ति गुणवत्ता पर ज़ोर: रेहन के बिना दिए गए खुदरा ऋण और सूक्ष्म ऋण कारोबार में चूक ज्यादा होने के कारण बैंक अब संपत्ति कि गुणवत्ता को ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं।
- सख्त अंडरराइटिंग मानक: ऋण देने के नियमों को लगातार सख्त किया जा रहा है।
- भविष्य का अनुमान: मोतीलाल ओसवाल का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 के लिए ऋण वृद्धि 11.5% रहेगी और उसके बाद वित्त वर्ष 2027 में यह 13% तक पहुँच जाएगी।
ऋण वृद्धि कि धीमी गति के कारण बकाया ऋण-जमा अनुपात भी घटकर 78.9% से घटकर 72.7% रह गया है।
RBI के हस्तक्षेप का असर
पिछले साल, जमा वृद्धि के मुकाबले ऋण वृद्धि बहुत ज्यादा थी, जिसमें 700 आधार अंक का बड़ा अंतर था। इस बड़े अंतर के कारण ही बैंकिंग प्रणाली में LDR बहुत बढ़ गया था, जिस पर आरबीआई ने बार बार चिंता व्यक्त की थी और इसे कम करने के निर्देश दिये थे।
- ऋण वृद्धि में गिरावट: जुलाई 2023 से ऋण वृद्धि में सुस्ती आई है और यह 2024 की शुरुआत में देखि गई दोहरे अंकों की ऊंची वृद्धि से नीचे आ गई है।
- जोखिम भार में वृद्धि: यह नरमी मुख्य रूप से आरबीआई द्वारा लागू किए गए उपायों के कारण है,जिसमें गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों (NBFC) को बैंकों द्वारा दिए जाने वाले ऋण और पर्सनल एवं क्रेडिट कार्ड से लिए गए ऋण जैसे बिना गारंटी वाले कर्जों पर जोखिम भार बढ़ाना शामिल है।
ऊंची ब्याज दरें और विदेशी बाज़ार का रुख
- ब्याज दरों का प्रभाव: इस साल फरवरी तक ब्याज दरें ऊंची बनी रहीं। इसके बाद आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने इनमें कमी करना शुरू किया है।
- कॉर्पोरेट्स का रुख: नतीजतन, भारतीय कंपनी जगत का एक बड़ा हिस्सा विदेशी ऋण पूंजी बाज़ार की ओर रुख करने लगा। बेहतर रेटिंग वाली कंपनियों ने बैंकों के मुकाबले सस्ती दर पर उधार लेने के लिए घरेलू डेट पूंजी बाज़ार का भी सहारा लिया।
- RBI की नीतिगत दरों में कटौती: RBI की मौद्रिक नीति समिति ने फरवरी से अभी तक नीतिगत दरों में कुल 100 आधार अंकों (1%) की कटौती की है। इसमें फरवरी में 25 आधार अंक, अप्रैल में 25 आधार अंक और जून में 50 आधार अंक की कटौती शामिल है।
यह दर्शाता है की बैंक अब गुणवत्ता पर ध्यान दे रहे हैं,और आरबीआई की नीतियों का भी ऋण वृद्धि पर असर दिख रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था में ऋण प्रवाह की गति धीमी हुई है।