लोन वितरण में तेज़ी लाओ! वित्त मंत्रालय ने सरकारी बैंकों को दिए सख्त निर्देश

भारत सरकार का वित्त मंत्रालय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) की सुस्त ऋण वृद्धि दर से चिंतित है। हाल ही में हुई एक समीक्षा बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकों को कड़ी निर्देश दिए हैं कि वे अपनी पर्याप्त पूंजी का लाभ उठाते हुए आक्रामक रूप से ऋण वितरण बढ़ाएं और सुनिश्चित करें कि सुविधाएं ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे। 

लोन ग्रोथ में रिकॉर्ड गिरावट

बिजनेस स्टैन्डर्ड द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक, 12 सरकारी बैंकों में से 10 का जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात (CRAR) मार्च 2025 तक 17% से अधिक रहा है, जबकि उनके लिए न्यूनतम 11.5% अनुपात ही रखना जरूरी है। यह दर्शाता है कि बैंकों के पास उधार देने के लिए पर्याप्त पूंजी है। 

वित्त मंत्रालय ने अपने बयान में पुष्टि की है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास पूंजी की कोई कमी नहीं है और उनका औसत CRAR मार्च 2025 तक 16.15% था। 

ब्याज दर कटौती के बावजूद धीमी वृद्धि

यह ऋण की धीमी वृद्धि ऐसे समय में हो रही है। जब केन्द्रीय बैंक ने फरवरी से नीतिगत रेपो दर में 100 आधार अंकों की कटौती की है और अर्थव्यवस्था में पर्याप्त नगदी बनाए रखी है। वर्तमान में रेपो रेट दर 5.5% है। 

एक अन्य सूत्र ने बताया कि मंत्री ने बैंकों से ब्याज दरों में कटौती के बाद आक्रामक रूप से ऋण बढ़ाने को कहा है। बैंकों को पिछले साल की तुलना में अधिक लोगों और व्यवसायों को ऋण देने पर ध्यान केंद्रित करने का निर्देश दिया गया है। 

RBI का विश्लेषण और बैंकों की सतर्कता

आरबीआई के जून मासिक बुलेटिन के अनुसार, अप्रैल में ऋण वृद्धि में मंदी मुख्य रूप से सेवा क्षेत्र और कृषि तथा संबद्ध गतिविधियों को दिए गए ऋण की वृद्धि में कमी के कारण है। बुलेटिन में यह भी कहा गया है कि ऋण वृद्धि में कमी धीमी गति के साथ-साथ प्रतिकूल आधार प्रभावों का भी परिमाण है। 

वहीं, बैंक भी सूक्ष्मवित्त और असुरक्षित खंडों में अधिक दबाव को देखते हुए, वृद्धि के बजाय परिसंपत्ति गुणवत्ता को प्राथमिकता देने के लिए ऋण देने में सतर्कता बरत रहे हैं। वित्त वर्ष 2025 में ऋण वृद्धि एक साल पहले के 16% से कम होकर 12% हो गई, क्योंकि बैंकों ने नियामक की चिंताओं और उच्च आधार प्रभाव के कारण जोखिम वाले क्षेत्रों के ऋणों में कटौती की। 

भविष्य का अनुमान और मंत्रालय की सलाह

इंडिया रेटिंग्स के मुताबिक, कम आधार प्रभाव और खुदरा तथा NBFCs (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों) के ऋण में कम वृद्धि के कारण अर्थव्यवस्था में ऋण वृद्धि धीमी पड़ी है। हालांकि,रेटिंग एजेंसी ने वित्त वर्ष 2026 में ऋण वृद्धि 13-13.5% सालाना रहने का अनुमान लगाया है। उनका मानना है कि अर्थव्यवस्था में पर्याप्त नगदी,रेपो दर में कमी और भविष्य में बैंकों की नगद आरक्षित अनुपात (CRR) आवश्यकताओं में कमी से निकट भविष्य में ऋण वृद्धि में तेजी आने की संभावना है। 

वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को जमा जुटाने के प्रयासों में निरंतरता पर भी जोर दिया है। उन्हे विशेष अभियान चलाने, अपनी बैंक शाखाओं के नेटवर्क का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करने और अर्ध-शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच बढ़ाने का सुझाव दिया गया है ताकि ऋण वितरण को गति मिल सके।